कालिज स्टूडैंट
फ़ादर ने बनवा दिये, तीन कोट छै पैंट
लल्ला मेरा बन गया, कालिज स्टूडैंट
कालिज स्टूडैंट, हुये होस्टल में भरती
दिन भर बिस्कुट चरैं, शाम को खायें इमरती
कहँ 'काका' कविराय, बुद्धि पर डाली चादर
मौज़ कर रहे पुत्र, हड्डियां घिसते फ़ादर
रचना : काका हाथरसी
‘ काका की फुलझड़ियाँ ’ पुस्तक ( डायमण्ड पॉकेट बुक्स , नई दिल्ली , संस्करण २००२ ) में प्रकाशित कविता 'कालिज-स्टूडैंट' से संक्षिप्त रूप में साभार उद्धृत
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